Tuesday 13 August 2019

मैंने खुद को कहीं खो सा दिया

मैंने खुद  को कहीं खो सा दिया!!!


रिश्तों की ज़ंजीरों में कुछ इस तरहान उलझ सा गया...
की लगा मैंने खुद को कहीं खो सा दिया।।।


जिसको जैसा लगा उसने वैसा सोच लिया,
अपने शब्दों को मेरा नाम दिया,
अपने जज्बात्तों को मेरा बना ही दिया,
दूसरों की खातिर मैंने अपना सब कुछ लुटा ही दिया


की लगा मैंने खुद को कहीं खो सा दिया।।।


सब के लिए वक़्त बंधने सा लगा,
किसी अनजाने चेहरे की कमिया पूरी करने सा लगा,
एक जनि पहचानी सी भीड़ में गुम होने सा लगा,
खुद  के लिए वक्त कहाँ ... ये सोचने सा लगा,
खुद के लिए वकत माँगा तो किसी और का गुलाम पाया,
एक जानी -पहचानी सी भीड में गुम सा होने लगा....



 की लगा मैंने खुद को कहीं खो सा दिया।।।

Saturday 28 April 2012

ख़ाब

तू कौन है?
जो जाने के बाद मुझे अकेला कर जाए...
जो न होते हुए भी हरपाल हर घडी तेरी ही याद दिलाये...
कोई एहेशस या कोई हकीकत...
कोई साथ या धोखा..
कोई रिश्ता या एक अनजाना...
क्यूँ हर घडी हरपाल हर लम्हा तुझे देखना चाहता हूँ...
क्यूँ हर घडी हरपाल तुझसे बात करना चाहता हूँ...
तू है तो फिजा है तू नही तो सब कुछ पराया है....



क्यूँ तुझे पैर इतना भरोषा है..
क्यूँ आती है तू तन्हाई में..
क्यूँ रहती है हरपाल मेरे साथ...
अपने का फ़र्ज़ तुने अदा किया..
दोस्ती का फ़र्ज़ तुने अदा किया..
तुजपर यकीं करूँ तो केसे..
तू हकीकत तो नही..
और न करूँ तो तू साथ छोड़ जाएगी...
तू कौन है...?
तू कौन है..?





तुझे पाना चाहता हूँ..
तुझपर यकीं करना चाहता हूँ...
तू साथ है तो सारी फिजा साथ..
ये धरती, आसमा, परिवार, दोस्त सब है..
तू नही तो में भी नही..
तू कौन है...
तू कौन है....
तू कौन है...
तू कौन है..







अनजाना रिश्ता

आज मनं मेरा भी है कुछ करने का..
आज मन मेरा भी है कुछ लिखने का...
कुछ है इस दिल में मुझसे अनजान..
कोई ख़ुशी कोई दुख कुछ तो है मुझसे बेखबर...

केसे धुन्डून आपने आपको,
केसे धुन्डून खुद को...
जो छुपा है लेकिन है जाना पहचाना....
आखिर क्या मांगता है ये दिल?
आखिर क्या चाहता है ये दिल?


जब भी देखूं मासूम से बच्चे को मन लगे शांत होने..
वो प्यारी सी हंसीं वो आँखों में मासूमियत...
वो दुनिया से अनजान...
न लालच न कोई दुख...
न कोई खुइस..
वो नासमझ हसीं....
आज मन मेरा भी है कुछ करने का..
आज मन मेरा भी है कुछ लिखने का....


जा भी देखूं इन परिंदों को..
मनं लगे शांत होने...
एक ख़ुशी गगन में उड़ने की...
न कोई बंधिश न कोई मजहब...
एक चाह गगन को चूमने की..
एक ऐसे गीत की चाह जो रहे हरदम गुनगुनाने  की...
सबसे बेखबर..
भरोषा अपने आप और अपने सुन्दर पंखों पर...
एक विशवाश जो कभी नही मरता..
एक आशा जो कभी नही मरता..
एक साथ जो सबको साथ रखे...
आज मन मेरा भी है कुछ करने का..
आज मन मेरा भी है कुछ लिखने का...



जा भी देखूं इन फूलों को..
मनं लगे शांत होने...
पहली किरण के साथ जागना..
खुद महक और सब को मेह्क्काना..
अपनी रंग बिरंगी खुशियाँ फेलाना..
दूसरों की ख़ुशी के लिए खुद आपनो से अलग हो जाना...
अपनी कोई ख़ुशी नही मगर दूसरों की ख़ुशी बन जाना...
हमेशा साथ रहने का यकीं दिलाना...
जेसे.. जेसे आँखों को छु जाना..
आज मन मेरा भी है कुछ करने का..
आज मन मेरा भी है कुछ लिखने का....




Sunday 12 February 2012

जाना था कभी तुझे......
माना  था कभी तुझे.....
रूठे थे तो मनाया तुझे.....दुखी थे तो हसाया तुझे....
हर ख़ुशी हर किरण हर कलि हर नगमे ने चाहा तुझे.....
चाँद तारे ये बहाने हर ख़ुशी हर नज़ारे इस दिल से चाहा तुझे....
रूठे थे तो मनाया  तुझे.....


अपना बनाया अपना माना....
मेरी हर ख़ुशी मेरी हर साँस ये जिंदगी ये दोलत ये सोहरत इस दिल से चाहा तुझे....
अपना बनाया तुझे अपना माना तुझे...
जाना था कभी तुझे...
माना था कभी तुझे....